‘दशरथ कृत शनि स्तोत्र’। (Dashrath Krit Shani Stotra PDF) इस स्तोत्र का पाठ करने से मान्यता है कि व्यक्ति के जीवन में संकटों का समाधान होता है और भगवान शनि की कृपा प्राप्त होती है।

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Dashrath Krit Shani Stotra PDF Summary

PDF TitleDashrath Krit Shani Stotra PDF
LanguageHindi
No. of Pages1
PDF Size1.44MB
PDF Categoryमंत्र

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दशरथकृत शनि स्तोत्र | Dashrath Krit Shani Stotra

दशरथ उवाच:

प्रसन्नो यदि मे सौरे ! एकश्चास्तु वरः परः ॥
रोहिणीं भेदयित्वा तु न गन्तव्यं कदाचन् ।

सरितः सागरा यावद्यावच्चन्द्रार्कमेदिनी ॥
याचितं तु महासौरे ! नऽन्यमिच्छाम्यहं ।

एवमस्तुशनिप्रोक्तं वरलब्ध्वा तु शाश्वतम् ॥
प्राप्यैवं तु वरं राजा कृतकृत्योऽभवत्तदा ।
पुनरेवाऽब्रवीत्तुष्टो वरं वरम् सुव्रत ॥

दशरथकृत शनि स्तोत्र:

नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च ।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ॥1॥

जिनके शरीर का वर्ण कृष्ण नील हैं, जैसे भगवान शंकर, उन शनि देव को हम नमस्कार करते हैं। वे जगत के लिए कालाग्नि और कृतान्त रूप में हैं, उन्हें हम बार-बार नमस्कार करते हैं।

नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च ।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते ॥2॥

जिनका शरीर कंकाल जैसा, मांस-हीन है, और जिनकी दाढ़ी-मूंछ और जटा बढ़ी हुई है, उन शनिदेव को हम नमस्कार करते हैं। जिनके बड़े-बड़े नेत्र, पीठ में सटा हुआ पेट और भयानक आकार है, उन शनैश्चर देव को हम नमस्कार करते हैं।।

नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम: ।
नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते ॥3॥

जिनके शरीर का ढांचा फैला हुआ है, जिनके रोएं बहुत मोटे हैं, जो लम्बे-चौड़े किन्तु सूके शरीर वाले हैं और जिनकी दाढ़ें कालरुप हैं, उन शनिदेव को हम बार-बार प्रणाम करते हैं।।

नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नम: ।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने ॥4॥

हे शने! आपके नेत्र कोटर के समान गहरे हैं, आपकी ओर देखना कठिन है, आप घोर रौद्र, भीषण और विकराल हैं, आपको हम नमस्कार करते हैं।।

नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते ।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च ॥5॥

वलीमूख! आप सब कुछ भक्षण करने वाले हैं, आपको हम नमस्कार करते हैं। सूर्यनंदन! भास्कर-पुत्र! अभय देने वाले देवता! आपको हम प्रणाम करते हैं।।

अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते ।
नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते ॥6॥

नीचे की ओर दृष्टि रखने वाले शनिदेव! आपको हम नमस्कार करते हैं। संवर्तक! आपको हम प्रणाम करते हैं। मन्दगति से चलने वाले शनैश्चर! आपका प्रतीक तलवार के समान है, आपको पुनः-पुनः प्रणाम करते हैं।।

तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च ।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम: ॥7॥

आपने तपस्या से अपनी देह को दग्ध कर लिया है, आप सदा योगाभ्यास में तत्पर, भूख से आतुर और अतृप्त रहते हैं। आपको हम सदा सर्वदा नमस्कार करते हैं।।

ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज-सूनवे ।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ॥8॥

ज्ञाननेत्र! आपको प्रणाम है। काश्यपनन्दन सूर्यपुत्र शनिदेव, आपको हम नमस्कार करते हैं। आप संतुष्ट होने पर राज्य दे देते हैं और रुष्ट होने पर उसे तत्क्षण हर लेते हैं।।

देवासुरमनुष्याश्च सिद्ध-विद्याधरोरगा: ।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत: ॥9॥

देवता, असुर, मनुष्य, सिद्ध, विद्याधर, और नाग – ये सब आपकी दृष्टि पड़ने पर समूल नष्ट हो जाते हैं।।

प्रसाद कुरु मे सौरे ! वारदो भव भास्करे ।
एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल: ॥10॥

देव, मुझ पर प्रसन्न होइए। मैं वर पाने के योग्य हूँ और आपकी शरण में आया हूँ।।

दशरथ उवाच:

प्रसन्नो यदि मे सौरे ! वरं देहि ममेप्सितम् ।
अद्य प्रभृति-पिंगाक्ष ! पीडा देया न कस्यचित् ॥

राजा दशरथ बोले- ‘प्रभु ! आज से आप देवता, असुर, मनुष्य, पशु, पक्षी तथा नाग-किसी भी प्राणी को पीड़ा न दें। बस यही मेरा प्रिय वर है।।

Dashrath Krit Shani Stotra Video With Lyrics

आप Dashrath Krit Shani Stotra Video का आनंद ले सकते हैं। उनके आशीर्वाद को प्राप्त करने का एक प्रभावी तरीका है। दशरथ कृत शनि स्तोत्र अत्यंत शक्तिशाली होता है, इसे नियमित रूप से सुनने से, शनि के दोषों और प्रभावों का प्रभाव कम हो सकता है और आपका जीवन खुशहाल बना सकता है।

Credit : Snehvardhan Shukla

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