भगवान श्री राम के प्रति हनुमान जी के भक्ति प्रेम से तो सभी भली भांति परिचित हैं और ये भी सभी को ज्ञात है कि किस तरह हनुमान जी ने माता सीता को खोजने में भगवान श्री राम की मदद की थी लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान हनुमान राम जी को पहली बार कहाँ मिले और किस जगह मिले थे? राम और भक्त मिलाप से जुडी कथा सभी को प्रिय है लेकिन राम और हनुमान मिलाप की कथा भी भक्तों के ह्रदय में भक्ति भाव की ज्योति का प्रज्वलन करते हुए उन्हें भाव विभोर कर देती है. आइए जानते हैं इस संदर्भ से जुड़ी रोचक कथा के बारे में.
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वाल्मीकि रामायण के अनुसार माता केकई की मांग के कारण जब भगवान श्री राम समेत माता सीता और लक्ष्मण जी वनवास काट रहे थे तब दुर्भाग्यवश रावण ने एक साधु का रूप धारण कर माता सीता का हरण कर लिया था जिस कारण भगवान श्री राम और लक्ष्मण जी माता सीता की खोज में निकल पड़े थे और उन्हें खोजते खोजते वो दोनों किशकिंदा पहुँच गए जहाँ बाली और सुग्रीव दो भाइयों के बीच राज्य को लेकर युद्ध चल रहा था हिंद पुराणों के अनुसार माना जाता है कि Bali को उसके धर्म पिता Indra से एक स्वर्ण हार प्राप्त हुआ था जिसको Brahma जी ने मंत्र युक्त कर ये वरदान दिया था कि उसको पहनकर Bali जब भी रणभूमि में अपने दुश्मन का सामना करेगा तो उसके दुश्मन की आधी शक्ति क्षीण होकर उसे प्राप्त हो जाएगी
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ब्रह्मा जी के वरदान के कारण सुग्रीव बाली के भय से ऋषिमुख पर्वत की एक गुफा में जाकर छिप गया किशकिंदा राज्य में ही अंजनी पर्वत पर हनुमान जी के पिता केसरी जी का राज था और हनुमान जी भी वहीं निवास करते थे उधर माता सीता की खोज करते-करते भगवान श्री राम और उनके अनुज लक्ष्मण जी ऋष्यमूक पर्वत पर पहुँच गए थे उन्हें वहाँ देखकर सुग्रीव अत्यंत भयभीत हो गया क्योंकि लगा कि उसके भाई बाली ने उसकी मृत्यु करने के लिए उन दोनों को वहाँ भेजा है इस शंका को मन में लेकर सुग्रीव हनुमान जी के पास पहुँचे और उन्हें सारा दृष्टांत समझाते हुए उनसे आग्रह किया कि वे उसकी रक्षा करें और उन दोनों युवकों
के वहाँ आने का उद्देश्य ज्ञात करें
सुग्रीव के आग्रह पर हनुमान जी ने उसे आश्वासन दिया और एक साधु का वेश धारण करके भगवान श्री राम के पास पहुँचे वहाँ पहुँचकर उन्होंने राम जी और लक्ष्मण जी को देखा और उनके तेज से ही उन्हें ये ज्ञात हो गया कि वे कोई और साधारण मनुष्य नहीं है हनुमान जी ने उनसे पूछा कि वो दोनों तेजस्वी युवक नर है या नारायण और उस पर्वत पर किस उद्देश्य से पधारे हैं इस पर श्री राम ने उत्तर दिया कि वो अयोध्या नरेश श्री दशरथ जी के पुत्र राम है और उनके साथ उनका अनुज लक्ष्मण है और वो अपनी पत्नी सीता की खोज में वहाँ आए है जिनका रावण ने हरण कर लिया है।
अपने आराध्य श्री Rama के नाम का स्वर सुनते ही Hanuman जी मानों जैसे मंत्रमुग्ध हो गए हो और उन्हें अपने सामने खड़े श्री Rama के अलावा मानो कोई और दिखाई ही नहीं दे रहा था वे अपने वास्तविक स्वरूप में आकर प्रभु श्री Rama के चरणों में गिर गए और भाव विभोर होकर अपना परिचय देते हुए अपने द्वारा की गयी पूछताछ के लिए क्षमा माँगने लगे भगवान श्री Ram ने Hanuman जी को अपने हाथों से उठाया और उनसे भीतर ग्लानि भाव नहीं रखने के लिए कहा और साथ ही कहा कि हनुमान जी भी उन्हें अपने अन्य भ्राताओं के समान ही प्रिय है और उन्हें अपने गले से लगा लिया।