हनुमान जी एक ऐसे देवता हैं जिन्हें ये वरदान प्राप्त है कि जो भी भक्त उनकी शरण में आएगा, उस भक्त का इस कलयुग में कोई भी कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा।
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- हनुमान जी द्वारा युद्ध में मुक्के का प्रयोग
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि हनुमान जी युद्ध में गदा का प्रयोग नहीं किया करते थे, बल्कि वे अपने बाहुबल अर्थात मुक्के से युद्ध किया करते थे।
- हनुमान जी की भुजाओं मे बल
कहते हैं कि राम भक्त हनुमान के मुक्का मे ऐसा बल था कि इससे बड़े से बड़े महारथी भी एक ही मुक्के में धराशायी हो जाता था। शास्त्रों के अनुसार स्वर्ग के देवता महाराज इंद्र के एरावत में दस हजार हाथियों का बल था, देखपाल में दस हजार एरावत के बराबर बल था और इंद्र में दस हजार देखपाल के बराबर बल बताया गया है, लेकिन हनुमान जी की सबसे छोटी ऊँगली जिसे हम कनिष्ठा भी कहते है में ही दस हजार इंद्र का बल विद्यमान है।
- हनुमान जी के बाहुबल का मेघनाथ को भय
रावण पुत्र मेघनाथ भी हनुमान जी के बाहुबल से परिचित थे तथा उन्हें भी हनुमान जी के मुक्के से बहुत डर था। इससे हम यह अनुमान लगा सकते हैं कि हनुमान जी कितने बलवान हैं तथा उनकी भुजाओ में कितना बाल है। जरा सोचिए जब हनुमान जी किसी पर मुक्के का प्रयोग करते होंगे, तब उसका क्या होता होगा ।
- हनुमान जी के बाहुबल से संबंधित साक्ष्य
हम तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस में हनुमान जी के बाहुबल तथा मुक्केे से संबंधित एक व्याख्यान आपको बताएंगे, जिसमें रावण जो की एक विद्वान और महारथी था को भी हनुमान जी का प्रकोप झेलना पड़ा। इसका उल्लेख रामचरितमानस में मिलता है जो तुलसीदास द्वारा लिखा गया है।
- मेघनाथ द्वारा छोड़े गए ब्रह्मास्त्र का हनुमान जी द्वारा सम्मान
जब मेघनाथ ने हनुमान जी को बंदी बनाने के लिए उन पर ब्रह्मास्त्र छोड़ा था और ब्रह्मास्त्र का मान रखने के लिए हनुमान जी बिना ब्रह्मास्त्र का अपमान किए स्वयं ही बंधी बन गए थे और फिर उन्हें बंदी बनाकर रावण की सभा में ले जाया गया।
- रावण की सभा में हनुमान जी की विशेषताओं की चर्चा
रावण के समक्ष हनुमान जी की कई विशेषताओं पर बाते चलने लगी, जैसे कि हनुमान जी का अपार बल, उड़ने की शक्ति और विराट रूप धारण करने की शक्ति इत्यादि। उस समय सभा में सबसे ज्यादा चर्चा का विषय हनुमान जी का बाहुबल तथा उनके द्वारा प्रयोग किए जाने वाला मुक्का विषय था।
- रावण द्वारा हनुमान जी को दिया गया मुक्का युद्ध का आह्वान
जब रावण ने हनुमान जी के मुक्के की प्रशंसा सुनी, तो उसने हनुमान जी से कहा, सुना है आपका बाहुबल बहुत अधिक है तथा आपके मुक्के मे बहुत अधिक बल है। रावण द्वारा हनुमान जी को एक-एक मक्का युद्ध का आह्वान दिया गया जिसे हनुमान जी ने स्वीकार किया । परंतु हनुमान जी ने शर्त रखी की पहले वार रावण द्वारा किया जाएगा। रावण इस पर क्रोधित हो गया और कहां , ‘यह मेरा अपमान है और आप मेरे बंदी है तो पहला अवसर मैं आपको देता हूं ।’ फिर हनुमान जी ने कहा कि आप पहले प्रहार करो, क्योंकि यदि मैंने पहले प्रहार किया तो आप प्रहार करने की स्थिति में नहीं बचोगे। इसलिए पहले आप ही प्रहार कीजिए। दोस्तों, ये सुनकर रावण बहुत ही क्रोधित हो गए और अपनी पूरी ताकत से एक बहुत ही जोर का मुक्का हनुमान जी की छाती पर मारा। इस बात की पुष्टि रामचरितमानस मे तुलसीदास द्वारा की गई है।
- रावण का हनुमान जी पर किया गया प्रहार
रावण के अपनी पूर्ण शक्ति से मारे गए इस मुक्के का हनुमान जी पर कोई असर नहीं हुआ। हनुमान जी घुटने टेक कर रह गए, पृथ्वी पर गिरे ही नहीं। रावण बहुत ही हैरानी से हनुमान जी को देखता हुआ आश्चर्यचकित रह गया।
- हनुमान जी के प्रहार का बारी
अब हनुमान जी की बारी आती है मुक्का मारने की। जैसे ही हनुमान जी ने अपना हाथ उठाकर अपना बल रावण पर प्रहार करने के लिए अपने मुक्के में एकत्रित किया तभी ब्रह्मा और शिव जी बेहद ही घबरा गए।
- ब्रह्मा जी द्वारा हनुमान को रावण पर प्रहार के लिए रोकना
ब्रह्मा जी बोले, ‘ रुको रुको’। कहीं मुक्का रावण को लग गया और वह मर गया। तब भगवान विष्णु द्वारा लिया गया श्री राम का अवतार ही व्यर्थ हो जाएगा।’ हनुमान जी जब ऊपर देखते हैं, तो ब्रह्मा जी कहते हैं, ‘दया करो हनुमान।’ फिर हनुमान जी कहते हैं, ‘रावण को थोड़ा तो अपनी मूर्खता का आभास करना ही चाहिए तथा इस जैसे विद्वान के घमंड को तोड़ना ही चाहिए।
- रावण द्वारा हनुमान जी की प्रशंसा
पवन पुत्र हनुमान द्वारा रावण पर मुक्के का प्रहार किया गया। हनुमान जी के इस प्रहार से रावण ऐसे गिरा, जैसे वज्र की मार से पर्वत गिरा हो। और बहुत देर तक रावण मूर्छित हो गया। रावण को जब होश आया तब वह हनुमान जी के बल का गुणगान करने लगा कि ‘हनुमान, तुम इतने बलशाली कैसे हो।
हनुमान द्वारा किए गए अपने बल प्रयोग के लिए तर्क
हनुमान जी ने कहा, ‘ब्रह्मा और शिवजी ने असली बल तो तुम्हें दिखाने ही नहीं दिया अन्यथा विष्णु भगवान का प्रभु श्री राम जी के रूप में अवतार लेना व्यर्थ हो जाता, बल तो तब देखते जब तुम बोलने के लिए जिंदा रहते। यह व्याख्यान गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रामचरितमानस में बताया गया हैं।
- हनुमान जी द्वारा रावण का घमंड तोड़ना
‘रावण कभी भी किसी की प्रशंसा नहीं करता था, लेकिन हनुमान जी के बल से प्रभावित हो तथा उसकी सभा में बैठे अन्य सभापतियों के सामने विवश होकर हनुमान जी की प्रशंसा करता है।’ इस प्रकार हनुमान जी ने बस एक ही मुक्के से रावण का खुद पर सबसे अधिक बलशाली होने का घमंड तोड़ दिया।
दोस्तों, एक बार हनुमान जी के लिए हमारे कमेंट सेक्शन में ‘जय बजरंगबली‘ लिखना ना भूलें।”